लखनऊ के।
जैसे धरना देते प्रदर्शनकारी
बिना कैमरे के।
सरकारी अनुमानों से भी बङा लगता है
चालीस और सौ का अंतरपर मैं देख रहा था सीधे, एकदम सीधे, बिना मन मचलाए निरंतर।
सारे नुस्खे आजमाने के बाद मा ने किया था ऐलान,
" तुम्हारे अंदर ठहराव नही; भटकती रहती है तुम्हारी आँखे और आने लगती है तुम्हे उबकाई ।
अगर बैठी रहो नजर सीधे साध कर और मन बाँध कर फिर देखो, इसमे है तुम्हारी भलाई ।"
शासक चाहे घर के हो या राज्य के
सर आँखो पर होते है उनके आदेश सारे ,
लिहाजा मुङकर नही देखे गए राजधानी के चौराहे ।
यूं तो ईजाद कर ली गई है मोशन सिकनेस की दवा
पर इसके लिए कबूल करनी होती है बीमारी।कबूलनामो को समझा जाता है कमी, कमजोरी
"मैं नही मानती तुम्हे कमजोर! "
"क्यों ?"
क्योंकि बस मानने से झूठ या सच की बढ़ती हैं ताकत,
और कैमरे के उस तरफ वालों के अनुसार
गायों का मानना हैं कि एक योगी के निर्णय नही होते गलत।