2020
नजर मे कुछ आता नहीं इसलिए नजरिया पेश करते है ।
Friday, October 22, 2021
Wednesday, May 5, 2021
ध्वनि बोध
हमने बचपन से सुना
आवश्यक है
जवाब ढूंढना
सवाल पूछना
और मौन रहना
आरोही क्रम में ।
हमारे बोध से बाहर ही रही
जरूरत, कब और कितनी सही
ध्वनि और निःशब्दता की ।
Tuesday, November 17, 2020
मोशन सिकनेस
लखनऊ के।
जैसे धरना देते प्रदर्शनकारी
बिना कैमरे के।
सरकारी अनुमानों से भी बङा लगता है
चालीस और सौ का अंतरपर मैं देख रहा था सीधे, एकदम सीधे, बिना मन मचलाए निरंतर।
सारे नुस्खे आजमाने के बाद मा ने किया था ऐलान,
" तुम्हारे अंदर ठहराव नही; भटकती रहती है तुम्हारी आँखे और आने लगती है तुम्हे उबकाई ।
अगर बैठी रहो नजर सीधे साध कर और मन बाँध कर फिर देखो, इसमे है तुम्हारी भलाई ।"
शासक चाहे घर के हो या राज्य के
सर आँखो पर होते है उनके आदेश सारे ,
लिहाजा मुङकर नही देखे गए राजधानी के चौराहे ।
यूं तो ईजाद कर ली गई है मोशन सिकनेस की दवा
पर इसके लिए कबूल करनी होती है बीमारी।कबूलनामो को समझा जाता है कमी, कमजोरी
"मैं नही मानती तुम्हे कमजोर! "
"क्यों ?"
क्योंकि बस मानने से झूठ या सच की बढ़ती हैं ताकत,
और कैमरे के उस तरफ वालों के अनुसार
गायों का मानना हैं कि एक योगी के निर्णय नही होते गलत।
Saturday, July 18, 2020
An old story with new names.
कीटनाशक
जब फसलों को दिए जाने वाले कीटनाशक
को किसान का पेय बनते देखेंगे बालक।
इकट्ठा हुई भीड़ के कैमरे उन्हे विश्वास दिला देंगे
गरीब और कीट के अंतर के दीवार गिरा देंगे।
तमाशा अभी खत्म नहीं, बैठाई जाएगी जाँच
होगी कारवाई, बनेगी रिपोर्ट, सुर्खियों की बढ़ाई जाएगी आँच।
दो-दो हाथ करेंगे अफसरशाही और मौलिक अधिकार
मिट्टी के मालिक मौत से करेंगे न्याय की गुहार।
Friday, June 12, 2020
कुछ काली
कुछ गोरी हो जाए।
और सांवली-
सी समीर थोङी हो जाए।
आधी अबला फिजा होगी,
बाकी पवन नर हो जाए।
अमुक बने तिलकधारी हिन्दू ,
फलां फलां मुसलमान हो जाए ।
नापा जाए इक हिस्सा देसी हवा का
सीमा से परे सब परदेसी हो जाए।
हवा चले चाल इंसानों की,
बयार -ए- बंटवारा मे हर किसी का दम घुट जाए।
Sunday, May 31, 2020
चादर
मछली, शेर या जीव जैसे चमगादङ।
वरना कैमरे से मशहूर हो जाते,
और इंसानो से ज्यादा कू्र हो जाते।
जैसे छाए हर पर्दे पर भले क्षणिक
मृत मानुष माॅ और बालक इक ।
न शोक की लहर उठी न आंखे तरल हुई
औरत उसपर भी गरीब, मृत आज होए या कल हुई।
कृष्ण गलत कह गए कि अजर-अमर भए आत्मा
वो देश बस इन्द्रियो पर है जिंदा, जहा मरी प्यास पीङित मा।
उस बालक को कुछ याद रहेगा, या कुछ भी भुला पाएगा ।
जीवन पर्यंत चादर ओढेगा, या हर कतरे से कतराएगा।
चाहत
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चाहत
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कीटनाशक इतिहास की लाठी के सहारे चलता हुआ एक देश उसके आभासी मध्य मे स्थि...
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हवाई बंटवारा इससे पहले की भेदभाव हो जाए तबाह, और समानता का राज हो जाए। आओ हम बाँट दे हवा आब-ओ-हवा पक्षपाती हो जाए । कु...