Sunday, May 31, 2020

चादर

वो तो अच्छा हुआ कि नहीं ओढ़ते चादर,
मछली, शेर या जीव जैसे चमगादङ।
वरना कैमरे से मशहूर हो जाते,
और इंसानो से ज्यादा कू्र हो जाते।
जैसे छाए हर पर्दे पर भले क्षणिक
मृत मानुष माॅ और बालक इक ।
न शोक की लहर उठी न आंखे तरल हुई
औरत उसपर भी गरीब, मृत आज होए या कल हुई।
कृष्ण गलत कह गए कि अजर-अमर भए आत्मा
वो देश बस इन्द्रियो पर है जिंदा, जहा मरी प्यास पीङित मा।
उस बालक को कुछ याद रहेगा, या कुछ भी भुला पाएगा ।
जीवन पर्यंत चादर ओढेगा, या हर कतरे से कतराएगा।
     
                                                                                

 चाहत